छत्तीसगढ़

रायपुर विकास प्राधिकरण जैसी भरोसमंद संस्था अपने वादे से मुकर नहीं सकती-हाई काेर्ट

A trusted institution like Raipur Development Authority cannot go back on its promise - High Court

बिलासपुर। जस्टिस गौतम भादुड़ी व जस्टिस राधाकिशन अग्रवाल के डिवीजन बेंच ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में रायपुर विकास प्राधिकरण (आरडीए) की अपील को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा है कि आरडीए जैसी भरोसेमंद संस्था जब आम जनता को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए वचन देता है तब वह अपने वादे से मुकर नहीं सकती। हर हाल में उसे अपने दायित्वों का निर्वहन करना होगा। हाई कोर्ट ने आवेदनकर्ता को उनकी जमा राशि वापस लौटाने का निर्देश दिया है। हाई कोर्ट का यह फैसला न्याय दृष्टांत बन गया है। रायपुर निवासी अनूप कुमार साहू ने अधिनियम, 2016 की धारा 31 के तहत रेरा, रायपुर के समक्ष एक आवेदन दायर किया था। कमल विहार परियोजना के तहत उसने मकान खरीदने रजिस्ट्रेशन कराया था। टू-बीएचके डुप्लेक्स हाउस के लिए 18 लाख 25 हजार रुपये की राशि तय की गई थी। इसके एवज में उसने 31 अक्टूबर 2017 तक 18 लाख 21 हजार 250 रुपये की राशि जमा कर दी थी। रेरा के समक्ष आवेदन जमा करने के चार साल बाद भी मकान का कब्जा नहीं मिला। प्रमोटर रायपुर विकास प्राधिकरण (आरडीए ) ने अपने पत्र 27 अगस्त 2020 द्वारा अनूप कुमार को 23. लाख 33 हजार 963.80 रुपये की राशि जमा करने के लिए कहा। जिसमें जीएसटी राशि भी दिखाई गई थी। यह भी कहा गया था कि यह अस्थाई कीमत है। दो से तीन फीसद राशि बढ़ सकती है। बाद में इसकी सीमा 35 फीसद तक बढ़ा दी गई। आवेदनकर्ता अनूप ने दो प्रतिशत वृद्धि के हिसाब से मकान का आवंटन का अनुरोध किया था। यह भी कहा कि उसे वर्ष 2016 में प्रचलित कीमत पर इंद्रप्रस्थ -दो नामक एक अन्य परियोजना में एक भूखंड आवंटित किया जाए। आवंटन ना करने की स्थिति में जमा राशि वापस करने की बात कही गई थी। आरडीए ने कहा कि मकान का आवंटन 10 जून 2016 को 18 लाख 25 हजार रुपये की राशि के लिए किया गया था। आरडीए ने सामग्री मूल्य में वृद्धि का हवाला देते हुए 27 अगस्त 2020 को पत्र लिखकर बढ़ी हुई कीमत मांगी गयी। यह भी बताया कि उसके पास 2016 की प्रचलित दर पर आवंटन के लिए कोई अन्य भूखंड उपलब्ध नहीं था।

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