छत्तीसगढ़

मेडिकल कालेज की रिसर्च में सामने आई ये बात

This thing came to light in the research of medical college

रायपुर। छत्‍तीसगढ़ में लगातार टीबी के मरीजों की संख्या बढ़ रही है। पिछले वर्ष रायपुर में टीबी के पांच हजार से ज्यादा मरीज मिले थे, वहीं 2018 में सिर्फ 1189 मरीज मिले थे। 2022 में भी टीबी मरीजों की संख्या लगभग पांच हजार के आसपास थी। पिछले दिनों अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में भी टीबी मरीजों की बढ़ती संख्या को लेकर वर्कशाप हुआ था। एम्स में भी टीबी जांच कराने वालों में लगभग 10 प्रतिशत लोगों को टीबी रोग निकल रहा है। तेजी के साथ बढ़ रहे टीबी मरीजों को लेकर मेडिकल कालेज के टीबी और चेस्ट विभाग के विशेषज्ञों ने शोध किया। उन्होंने अपने शोध का मुख्य बिंदु कोरोना रखा। कोरोना के कारण तो टीबी मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी तो नहीं हुई है। शोध में टीबी मरीजों की संख्या बढ़ने में कोरोना का कोई भी असर नहीं मिला। इस दौरान टीबी का इलाज कराने आने वाले मरीज से विशेषज्ञों ने कोरोना होने की जानकारी ली। कोरोना हुआ है तो किस स्तर का था? जिन लोगों को कोरोना हुआ है, उन्हें टीबी बीमारी की शिकायत तो नहीं है? आंकड़े जुटाने के बाद अध्ययन करने पर पता चला कि टीबी मरीजों की संख्या बढ़ने के मामले में कोरोना का कोई संबंध नहीं है। कोरोना काल में न तो टीबी की जांच करवाई गई और न ही इलाज किया गया, इस वजह से मरीजों की संख्या इतनी बढ़ गई। कोरोना के दौरान जिन लोगों को भी खांसी संबंधी परेशानी हुई तो लोगों ने टीबी की जांच नहीं करवाई। टीबी एवं चेस्ट विभाग के एचओडी डा. आरके पंडा ने बताया कि कई बार लोग सामान्य खांसी समझकर इग्नोर कर देते हैं। बाद में जांच करवाने पर टीबी निकल रही है। समय रहते जांच करवाने से बीमारी होने की जानकारी शुरुआत में ही मिल जाती है, जिससे इलाज बेहतर होता है। कई बार टीबी के लक्षण काफी दिनों तक दबे रहते हैं। केंद्र सरकार की नई गाइडलाइन के अनुसार 2021 के बाद से फेफड़े का टीबी होने पर मरीज के घर के सभी सदस्यों को दवा खिलाने के निर्देश हैं। मरीज के जरिए परिवार के दूसरे सदस्यों को भी बीमारी हो सकती है। तीन महीने की साप्ताहिक खुराक तय की गई है, लेकिन ज्यादातर परिवार के सदस्य दवाएं नहीं लेते हैं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button