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दुनिया की सबसे छोटी डोनर बनी उत्तराखंड की सरस्वती, मां-बाप ने किया ढाई दिन की बच्ची का देहदान

देहरादून। उत्तराखंड में ढाई दिन की सरस्वती का नाम दुनिया की सबसे छोटी देहदाता के रूप में दर्ज हो गया है। बच्ची जन्म से ही हृदय रोग से पीड़ित थी और पैदा होने के मात्र ढाई दिन में ही उसकी मौत हो गई। ऐसे में उसके माता-पिता ने बच्ची का देहदान कर एक मिसाल कायम की है। बच्ची का शव म्यूजियम में सुरक्षित तो रखा जाएगा लेकिन अब उसके माता-पिता कभी भी उसे नहीं देख पाएंगे।
ढाई दिन की बच्ची सरस्वती के देहदान की खबर सुर्खियों में है। हर कोई इस बच्ची की असमय मौत और देहदान की खबर से हैरान है। उत्तराखंड के इस युवा दंपति ने अपनी बच्ची का देहदान कर एक बड़ी मिसाल पेश की है।
हरिद्वार के ज्वालापुर स्थित पुरुषोत्तम नगर निवासी 30 वर्षीय राममेहर और उनकी पत्नी मगन देवी ने मेडिकल एजुकेशन के लिए अपनी ढाई दिन की बच्ची का शव दान दिया है। दून मेडिकल कॉलेज के एनाटॉमी विभाग को बच्ची का शव दान में दिया गया है।
डॉक्टर के अनुसार मगन देवी को लेबर पेन की वजह से दून अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जहां रविवार 8 दिसंबर को दोपहर के समय सिजेरियन से उन्होंने बच्ची को जन्म दिया। इस दंपति की यह दूसरी औलाद थी। अभी यह दंपति बच्ची के होने की खुशियां मना ही रहा था कि बच्ची को हृदय संबंधी रोग होने की खबर ने उन्हें हिला कर रख दिया। यह बच्ची NICU वार्ड में भर्ती थी लेकिन 10 दिसंबर को उसकी मौत हो गई।
बच्ची की मौत से दंपती सदमे में थे। इसी दौरान राम मेहर ने अपनी बच्ची की मौत की जानकारी अपने पारिवारिक डॉक्टर जितेंद्र सैनी को दी। ढाई दिन की बच्ची के हार्ट रिलेटेड प्रॉब्लम की वजह से मौत होने की बात पर डॉक्टर जितेंद्र सैनी ने बच्ची के शरीर को दान देने की राय दी।
अपनी ढाई दिन की बच्ची के देहदान की खबर से दंपती कुछ कसमसाए लेकिन डॉक्टर सैनी की प्रेरणा से उन्होंने दधिचि देहदान समिति के पदाधिकारियों से संपर्क कर दून हॉस्पिटल के एनाटॉमी विभाग को शव दान में दे दिया।
जन्म से ही वेंटिलेटर पर थी
अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अशोक कुमार के अनुसार सरस्वती बर्थ एसफिक्सिया नाम की बीमारी से पीड़ित थी। जन्म के बाद से वेंटिलेटर सपोर्ट पर थी। काफी प्रयासों के बाद भी बच्ची को बचाया नहीं जा सका। मंगलवार देर रात करीब 2:34 बजे बच्ची ने आखिरी सांस ली।। यह बीमारी बच्चों में जन्म से होती है। इसमें बच्चों के मस्तिष्क तक ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती है और बच्चे को सांस लेने में तकलीफ होती है। जिससे बच्चों के शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा घट जाती है और एसिड का स्तर बढ़ जाता है।

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