प्रदेश में NSUI प्रदेश अध्यक्ष ने अपने पिता के साथ मिलकर सरकारी तिजोरी पर लगाया करोड़ो का चूना
NSUI state president along with his father embezzled crores of rupees from the government treasury
रायपुर: छत्तीसगढ़ में राजनीति के ससुर – दामाद और समधी तीनों की कार्यप्रणाली सुर्ख़ियों में है। ये सभी जनसेवा के कार्यों मे जुटे हुए है। लेकिन सत्ता का मेवा बटोरने में पीछे नहीं रहे। बस्तर समेत राज्य के तमाम जिलों में ग्रामीण अभियांत्रिकी सेवा नामक विभाग के जरिये सड़कों पर सोलर स्ट्रीट लाइट पैनल समेत स्थापित करने के मामले में करोड़ो का घोटाला सामने आया है। प्रत्येक पंचायतों में इसके लिए विशेष रूप से लाखों की रकम आबंटित की गई थी। लेकिन गांव कस्बों में खंबे तक नहीं लगे और न ही सोलर पैनल यूनिट भेजी गई। हां उनके लाखों के भुगतान का बिल जरूर आया।
गरीब ग्रामीण सड़कों में स्ट्रीट लाइट लगवाने की गुहार जनप्रतिनिधियों से लगाते रहे। लेकिन साल दर साल गुजरते रहे। पंचायतों ने उसका बिल भुगतान किया। जबकि सरकारी रकम हथियाने के बाद ससुर – दामाद और समधी के ठिकाने रौशनी से जगमगा उठे। अब सत्ता बदलने के बाद हिसाब – किताब का दौर शुरू हो गया है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपे बघेल के काले कारनामों से विधानसभा सरगर्म है। भ्रष्टाचार के सवालों को लेकर कांग्रेसी विधायक बगले झांक रहे है, जबकि पूर्व मुख्यमंत्री बघेल बेशर्मों की तरह अपनी फेस सेविंग में जुटा है, तमाम घोटालों और फर्जीवाड़े को लेकर उसके कु-तर्कों से लोग हैरान है।
करोड़ो के सोलर पैनल घोटाले की तह तक पहुंचने से पहले राजनीति के ससुर – दामाद का कारोबार जानना भी बेहद जरुरी है। NSUI नेता आकाश शर्मा के पिता अरुण शर्मा एक सरकारी अधिकारी (एक्सक्यूटिव इंजिनियर) है। आप जानकर हैरत में होंगे कि कोई सरकारी अधिकारी एक विभाग का अफसर होने के बजाय लगभग आधा दर्जन विभागों का प्रमुख कर्ताधर्ता बन गया था। दरअसल पूर्व मुख्यमंत्री बघेल का उसे संरक्षण प्राप्त था। नतीजतन हाथों में भ्रष्टाचार की परोसी गई थाली में बघेल ने उसे जनता की तिजोरी लूटने की जवाबदारी सौंपी थी।
बताया जाता है कि अरुण शर्मा नामक सरकारी अफसर एक साथ कुल 5 अलग – अलग विभागों में जमा हुआ था। उसका ओहदा प्रभारी PMGSY अर्थात प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना, भानुप्रतापपुर में एक्सक्यूटिव इंजिनियर PMGSY, PMGSY मुख्यालय, MMGSY, RES अर्थात रूरल इंजिनियरिंग सर्विस में प्रभारी एक्सक्यूटिव इंजिनियर इस तरह से लगभग 5 डिवीजन की बागडोर संभाल रहा था। बताते है कि तमाम विभागों में करोड़ों का चूना सिर्फ मुख्यमंत्री के राजनैतिक संरक्षण के चलते लगाया गया है। बता दे कि NSUI नेता आकाश शर्मा का नाता पूर्व मुख्यमंत्री बघेल के राजनैतिक सलाहकार राजेश तिवारी से भी है। वे उनके दामाद बताये जाते है। अब यह भी जान लीजिये कि ‘समधी’ जैसी रिश्तेदारी सरकारी तिजोरी पर कितनी भारी पड़ी है। मामला RES विभाग में करोड़ो के सोलर लाइट घोटाले का है। बताते है कि घोटाले की नीव NSUI के खर्चों को व्यवस्थित कर व्यक्तिगत लाभ अर्जित करने के लिए रखी गई थी।
कुछ दिनों में ही इसे कुटीर उद्योग की शक्ल दे दी गई। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने सोलर पैनल घोटाले को लेकर चुप्पी साधी हुई है। बकि विधानसभा में सरकारी तिजोरी लूटे जाने को लेकर बवाल हो रहा है। विधायकों के मुताबिक राजनीति की आड़ में संचालित हुए इस नए कारोबार में बाप – बेटे, ससुर – दामाद सभी की भूमिका किसी पेशेवर गिरोह की तर्ज पर नजर आ रही है। इसके द्वारा आदिवासी इलाकों में खासतौर पर गबन और सरकारी रकम की लूटपाट जैसी घटनाओं को अंजाम दिया गया था। बताया जाता है कि RES ने प्रदेशभर में पंचायतों की सड़कों पर सोलर स्ट्रीट लाइट लगाने का कार्य हासिल किया गया था। इसके लिए उसे लगभग 50 करोड़ की पूर्व मुख्यमंत्री की कमीशनखोरी के चलते प्रदेश भर की पंचायते अँधेरे में डूबी रही, जबकि कांग्रेस के NSUI के अध्यक्ष समेत उनका परिवार महीने दर महीने गरीब जनता की रकम पर हाथ साफ़ करते रहा। इस मामले को लेकर अब विधानसभा में हंगामा हो रहा है।
राजनेताओं के जरिये सरकारी कुर्सी के बेजा इस्तेमाल और भ्रष्टाचार की जांच अब सदन की कमेटी को सौंप दी गई है। राज्य में भ्रष्टाचार के कई नमूने देखने को मिल रहे है। इस मामले में पूर्व मुख्यमंत्री बघेल, NSUI के तत्कालीन अध्यक्ष आकाश शर्मा, सरकारी अधिकारी उनके पिता अरुण शर्मा और तत्कालीन मुख्यमंत्री के सलाहकार राजेश तिवारी सुर्ख़ियों में है। विधानसभा में मामले के तूल पकड़ने के बाद राजनीति के ससुर – दामाद और समधी तीनों की कार्यप्रणाली सुर्ख़ियों में है। जानकारी के मुताबिक PMGSY में फंड भारत सरकार द्वारा सीधे तौर पर राज्यों को भेजा जाता है। लेकिन इस मद को राज्य सरकार किसी अन्य विभाग या उन विभागों के मदों पर स्थानांतरित नहीं कर सकती। बताया जाता है कि NSUI के तत्कालीन अध्यक्ष आकाश शर्मा और उनके ससुर ने तत्कालीन मुख्यमंत्री बघेल से इस मद का बड़ा हिस्सा RES विभाग को आवंटित कर दिया था।
बताते है कि इस रकम की बंदरबाट के लिए RES में पदस्थ तत्कालीन E.E. अरुण शर्मा पूरी तरह से तैयार बैठे थे। विभाग के खाते में रकम आते ही उनके द्वारा बगैर टेंडर – निविदा बुलाये स्वयं एवं अपने चहेतों के साथ सोलर पैनल लाइट की आपूर्ति में जुट गए। सूत्रों के मुताबिक सोलर पैनल के बजाय विभिन्न लोकल वेंडर और कंपनियों ने सिर्फ अपने बिल भेजे थे, माल नहीं। नतीजतन प्रदेशभर की पंचायतों में बगैर सोलर पैनल स्थापित हुए करोड़ो का भुगतान कर दिया गया।
भारत सरकार की योजना के तहत पूरे प्रदेश में प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना में सोलर लाइट स्थापित करने का कार्य किया जाना था। इसमें कोंडागांव, नारायणपुर, बीजापुर, सुकमा और अन्य इलाकों में बड़े पैमाने पर धांधली बरती गई। सरकारी रिकॉर्ड में जहाँ स्ट्रीट लाइट दर्ज है, वास्तव में वहां सड़कों पर खंबा तक नहीं लगा है। बताया जाता है कि ग्रामीण यांत्रिकी सेवा के अधिकारी घोटाले में फ़साने के बाद क्रेडा पर उंगलियां उठा रहे थे। लेकिन अब आधिकारिक रूप से जानकारी प्राप्त हुई है कि क्रेडा के साथ इस विभाग का दूर – दूर तक कोई नाता नहीं था।
दागी अफसर बचने के लिए शासन – प्रशासन को गुमराह करने में जुटे थे। सोलर पैनल स्ट्रीट लाइट के लिए क्रेडा से कोई सलाह तक नहीं ली गई थी। बताया जाता है कि दागी अफसरों ने अपना बाजार सजाने के लिए फर्जी ठेकेदारों की फौज खड़ी की थी। इन्ही की मिली – भगत से करोड़ों का गबन किया गया। सूत्रों के मुताबिक तत्कालीन सीएम बघेल इस घोटाले से वाकिफ थे। लेकिन वे लाभ को देखते हुए चुप्पी साधे रहे। जानकारों के मुताबिक सरकारी तिजोरी पर सेंधमारी के मामले में भूपे बघेल का नाम भी लाभार्थियों की सूची में अव्वल नंबर पर बताया जाता है। कोंडागांव से विधायक और पूर्व मंत्री लता उसेंडी ने RTI के जरिये दस्तावेज प्राप्त कर पूर्व मुख्यमंत्री बघेल और उनकी टोली का पर्दाफाश कर दिया है।
लता उसेंडी ने ग्रामीणों की समस्याओं को विधानसभा में जोर-शोर से उठा कर मामले की निष्पक्ष जांच और वैधानिक कार्यवाही की मांग की है। उनके मुताबिक मामले की फ़ौरन FIR दर्ज कर पुलिस विवेचना किया जाना चाहिए, यह आपराधिक भ्रष्टाचार का मामला है। इससे आदिवासी इलाके बुरी तरह से प्रभावित हुए है। फ़िलहाल मामले की जांच के लिए विधायकों की कमेटी के गठन का इंतजार किया जा रहा है। कानून के जानकारों के मुताबिक EOW और पुलिस इस तरह के मामलों की विवेचना के लिए अधिकृत एजेंसी है, उनके मुताबिक कानून अपना कार्य कर सकता है, जबकि विधायकों की जांच कमेटी इसकी असलियत परखेगी।