छत्तीसगढ़

डॉ. कालड़ा ने जले हुए मासूमों को दी नई जिंदगी

ये बच्चे 35 से 75 फीसदी जल गए थे

रायपुर। गंभीर रूप से जले 5 मासूम बच्चों को एक नई जिंदगी मिली है। ये बच्चे 35 से 75 फीसदी जल गए थे। उनके परिजनों ने उम्मीद छोड़ दी थी, लेकिन यह सब डॉ. सुनील कालड़ा ने इन मासूमों को एक नई जिंदगी दी।

पचपेढ़ी नाका, कलर्स माल के आगे स्थित कालड़ा बर्न एवं प्लास्टिक सर्जरी सेंटर संचालक व अंचल के प्रसिध्द कॉस्मेटिक व रिकन्स्ट्रटीव सर्जन डॉ. सुनील कालड़ा ने जिन बच्चों का इलाज किया उनमे कुछ बच्चे दीवाली में पटाखा चलते वक्त जले थे, तो कुछ अपनी नादानी के चलते। डॉ. कालड़ा ने बताया कि रायगढ़ निवासी 11 वर्षीय प्रियांशु प्रधान अपने भाई के साथ दीपावली में पटाखा (अनार) जला रहा था। इस दौरान अनार फट गया और प्रियांशु के कपड़े में आग लग गई मैं और वह जल गया। उसे पास के अस्पताल ले गये व एक-दिन भर्ती रख कर ईलाज किया गया, मगर मरीज में कोई सुधार नही दिखा और उसकी हालत और खराब होते चली गई। परिजनों ने उसे कालड़ा प्लास्टिक कॉस्मेटिक सर्जरी एवं बर्न सेंटर, रायपुर लाया और उसका ईलाज किया गया। प्रियांशु का करीब 2-3 माह तक ईलाज चला उसके बाद स्वस्थ होकर सकुशल घर गया।

इसी तरह खैरागढ़ निवासी 10 वर्षीय भाव्य श्रीवास 17 मार्च को परफ्यूम स्प्रे को माचिस से खेलते हुए 35 से 40 प्रतिशत जल गई थी। उसकी छाती जल गई थी। उसी की जांघ से स्कीन निकालकर लगाई गई है। इसी तरह 6 वर्षीय सौम्या वर्मा जो 27 अप्रेल को अपने घर के आंगन में खेलते हुए संतुलन बिगड़ जाने के कारण जलते हुए दिये में गिर गई जिससे उसके कपड़े जल गये मैं और व भी झुलस गई। उसे कालड़ा हॉस्पीटल में भर्ती कराया गया। सौम्या की ग्राफ्टिंग कर उसे बचाया गया। वहीं 2 बच्चें साईबा बानो व शनाया जैन जो कि खेलते समय झुलस गये थे उन्हें भी नया जीवन दिया। बच्चें 45 से 70 प्रतिशत तक जले थे।

डॉ. कालड़ा ने आगे बताया कि वे विगत 33 वर्षों से कालड़ा बर्न एवं प्लास्टिक सर्जरी सेंटर में जले हुए मरीजों का ईलाज हो रहा है। यह सेंटर प्रदेश का एकमात्र सर्वसुविधायुत अस्पताल है जहां बर्न मरीजों की बहुत ही अच्छी तरह से केयर की जाती है। जिससे 90 प्रतिशत जले मरीजों को भी ठीक किया गया है। उन्होंने आगे बताया कि जलने के बाद यदि मरीजों का सही तरह से इलाज नही होता है तो जिससे जान को खतरा बन जाता है। बाद में स्कीन मोटी हो जाती है जिससे शरीर में खुजली होने लगती है व शरीर के हिस्से जैसे हाथ, पैर या गर्दन की स्कीन चिपक जाती है। इसके कारण मरीज सामान्य जीवन नहीं जी पाता। इन सभी विकृतियों का भी इलाज भी हमारे अस्पताल में किया जाता है। हमारे यहां एक्सक्लूसिव स्कीन बैंक भी है जिसकी स्कीन इस मरीज को लगाई गई है जोकि संपूर्ण भारत में बहुत ही कम जगहों पर उपलब्ध है। स्कीन बैंक में मृत्यु उपरांत मरीजों की स्कीन को 6 घंटे के भीतर सुरक्षित निकाला जाता है मैं और उसे 5 साल तक स्टोर कर सुरक्षित स्कीन बैंक में रखा जाता है। गंभीर व जले हुए मरीजों को स्कीन की जरूरत पड़ने पर मरीज के शरीर में लगाया जा सकता है। स्कीन बैंक में कोई भी जीवित या मृत अपनी इच्छानुसार अपनी स्कीन दान कर सकता है।

उन्होंने आगे बताया कि हमारे यहां बर्न सेंटर में निम्न सुविधाएं उपलध है। 10 इंटेंसिव आइसोलेशन केयर ग्लास केबिन, हेपा फिल्टर/लेमिनर फ्लो 100 प्रतिशत जीवाणु रहित ग्लास केबिन, मल्टीपैरा मॉनीटर्स, वेंटिलेटर, सेंट्रल ऑसीजन सप्लाई, सेंट्रल सशन, जले हुए मरीजों हेतु विशेष बिस्तर, प्रति बिस्तर के लिए समर्पित स्टॉफ शॉवर ट्राली (जर्मनी से आयातित), संपूर्ण भारत का प्रथम एक्सक्लूसिव बर्न यूनिट, जलने के बाद की विकृतियों का संपूर्ण ईलाज, डायलिसीस की सुविधा, संपूर्ण ओटी व आईसीयू लेमिनर एयर फ्लो, डॉ. कालडा ने बताया कि उनका अस्पताल एकमात्र ऐसा अस्पताल है जहां बर्न एवं लेजर सिस्टम की सुविधा है साथ ही स्पेशल ड्रेसिंग की सुविधा भी है जिससे घाव जल्दी भरता है इसके अलावा मिग ग्राफ्टिंग सुविधा अत्याधुनिक आईसीयू, ट्रामा सेंटर व बर्न यूनिट भी है, उसमें दुर्घटना में घायल मरीजों का ईलाज अत्याधुनिक तकनीक व्दारा किया जा रहा है व 90 प्रतिशत तक जले मरीजों को भी बचाया जा सका है।

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