कब्जे का दावा करने वाले पक्ष को पता होना चाहिए कि वास्तविक मालिक कौन
The party claiming possession must know who is the actual owner.
बिलासपुर। सुप्रीम कोर्ट के ताजा आदेश की रोशनी में ज्योति गुप्ता अतिरिक्त अभिभाषक फास्टट्रेक कोर्ट महत्वपूर्ण विधिक प्रविधान की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि एक वादी प्रतिकूल कब्जे के दावे के आधार पर संपत्ति पर स्वामित्व की मांग नहीं कर सकता है। यदि वह यह साबित करने में विफल रहता है कि संपत्ति का वास्तविक मालिक कौन था और 12 साल से अधिक समय तक निर्बाध कब्जा मूल मालिक की जानकारी में था। हाई कोर्ट और ट्रायल कोर्ट के निष्कर्षों की पुष्टि करते हुए युगल पीठ ने कहा कि यदि वादी सामग्री व तथ्यों का खुलासा करने में विफल रहता है तो वह वादपत्र में संपत्ति पर उसके प्रतिकूल कब्जे को साबित करते हुए संपत्ति के प्रतिकूल कब्जे के लाभ का दावा करने का हकदार नहीं होगा। डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में कहा कि जब कोई पक्ष प्रतिकूल कब्जे का दावा करता है, तो उसे पता होना चाहिए कि संपत्ति का वास्तविक मालिक कौन है। दूसरे, उसे दलील देनी होगी कि मूल मालिक की जानकारी में ये था कि वह 12 साल से अधिक समय से खुले और निर्बाध कब्जे में है। ये सामग्री कथन वाद में पूरी तरह से अनुपस्थित हैं। इसलिए, वाद में प्रतिकूल कब्जे की दलील के लिए कोई उचित आधार नहीं है। अदालत ने प्रतिकूल कब्जे के आधार पर संपत्ति के स्वामित्व का दावा करने के संबंध में कानून की स्थापित स्थिति को दोहराया है। प्रतिकूल कब्जे की दलील साबित करने के लिए-वादी को दलील देनी होगी और साबित करना होगा कि वह वास्तविक मालिक के प्रतिकूल कब्जे का दावा कर रहा था। वादी को दलील देनी होगी और यह स्थापित करना होगा कि उसके लंबे और निरंतर कब्जे का तथ्य असली मालिक को पता था। अदालत ने कहा कि यह स्थापित कानून है कि प्रतिकूल कब्जे की दलील देकर, एक पक्ष असली मालिक के अधिकारों को खत्म करना चाहता है, और इसलिए, उसके पक्ष में कोई इक्विटी नहीं है। आखिरकार, यह याचिका 12 साल से अधिक समय से लगातार ग़लत कब्जे पर आधारित है। इसलिए, प्रतिकूल कब्जे की सामग्री बनाने वाले तथ्यों को वादी द्वारा प्रस्तुत और साबित किया जाना चाहिए।