छत्तीसगढ़

इस बार सिर्फ एक ही विधायक रायपुर की सीट बचाना चुनौती

This time the challenge is to save only one MLA Raipur seat.

रायपुर। भाजपा ने रायपुर लोकसभा सीट से बृजमोहन अग्रवाल को सामने लाकर कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। 2019 के चुनाव में रायपुर लोकसभा क्षेत्र में आने वाली नौ विधानसभा क्षेत्रों में से छह सीटों पर कांग्रेस का कब्जा था, जबकि दो पर भाजपा और एक पर जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ ने जीत दर्ज की थी। इसके बावजूद कांग्रेस रायपुर सीट बचाने में असफल रही। बता दें कि आखिरी बार 1984 में कांग्रेस के प्रत्याशी केयूर भूषण ने 2,23,192 से जीत हासिल की थी। उन्होंने भाजपा के प्रत्याशी रमेश बैस को एक लाख से अधिक मतों से हराया था। 1980 के चुनाव में भी केयूर भूषण ही सांसद बने थे। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी सुनील सोनी ने कांग्रेस के निकटतम प्रतिद्वंदी प्रमोद दुबे को लगभग साढ़े तीन लाख वोटों से मात दी थी। वहीं, इस बार तो रायपुर लोकसभा की नौ विधानसभा सीटों में से आठ पर भाजपा का कब्जा है और एकमात्र भाटापारा की सीट पर कांग्रेस का विधायक है। ऐसे में कांग्रेस की चुनौतियां और बढ़ गई है। इसी बीच भाजपा ने इस बार रायपुर दक्षिण सीट से आठ बार के विधायक बृजमोहन को मैदान में उतारा है। भाजपा में बड़े कद का नेता होने के दृष्टिकोण से कांग्रेस के लिए उनके स्तर का प्रत्याशी चुनना सरल नहीं दिखाई नहीं पड़ रहा है। कुल मिलाकर, इस बार भी रायपुर लोकसभा सीट जीतना कांग्रेस के लिए टेढ़ी खीर साबित हो सकती है। रायपुर लोकसभा क्षेत्र में भाजपा ने तो अपनी मंशा स्पष्ट कर दी है। वहीं, कांग्रेस ने अब तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। इसी बीच मोदी की गारंटी और लहर का प्रभाव पिछले दो चुनाव से देखने को मिल रहा है और 33 वर्षों से यह सीट कांग्रेस के खाते में नहीं जा पाई है। ऐसे में रायपुर लोकसभा से चुनाव लड़ना बलि का बकरा बनने जैसा ही रहेगा। पिछले लोकसभा चुनाव के परिणाम बताते हैं कि रायपुर लोकसभा के अंतर्गत आने वाली एक भी विधानसभा सीट पर कांग्रेस को कहीं भी बढ़त नहीं मिल पाई थी। भाटापारा ही एकमात्र ऐसी विधानसभा थी, जहां कांग्रेस सिर्फ 252 मतों से पीछे रही। इसके अलावा अन्य सभी विधानसभा सीटों में अंतर हजारों में था।

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